मन का भंवर
आँखों की आरजू
दिल की तमन्ना
उड़ चलें कहीं उस अब्र के पीछे
और देखें बारिश बनते हुए
और भीग के उसी बारिश में
गिर जायें हौले से ज़मीन पर
मिटटी की सौंधी खुशबू का कारण बन जाएँ
पीपल के पत्ते से लटकती वो बूँद बन के ही जी लें कम से कम
या फिर गर बुलंदियों में ही रहने का जी कर जाये
तो कोहरे की शकल में आ जायें कभी तुम्हे देखने
तुम्हारी बालकोनी के कोने से सर्द हवा बन के घुस जायें किसी तकिये में
और सूरज के निकलते ही बस फना हो जायें धीरे से
मन का भंवर
आँखों की आरज़ू
दिल की तमन्ना
फिर कभी मुस्कुराये तो ये हसरतें भी पूरी कर ले हम
और जब उम्र छा जाये काले बादलो की तरह
बस सुबह की नर्म घास पे
ओस बन के वही तोड़ दे दम
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