Thursday, December 15, 2011

Udaan

मन का भंवर
आँखों की आरजू
दिल की तमन्ना

उड़ चलें कहीं उस अब्र के पीछे
और देखें बारिश बनते हुए
और भीग के उसी बारिश में 
गिर जायें हौले से ज़मीन पर

मिटटी की सौंधी खुशबू का कारण बन जाएँ
पीपल के पत्ते से लटकती वो बूँद बन के ही जी लें कम से कम

या फिर गर बुलंदियों में ही रहने का जी कर जाये
तो कोहरे की शकल में आ जायें कभी तुम्हे देखने
तुम्हारी बालकोनी के कोने से सर्द हवा बन के घुस जायें किसी तकिये में
और सूरज के निकलते ही बस फना हो जायें धीरे से

मन का भंवर
आँखों की आरज़ू
दिल की तमन्ना

फिर कभी मुस्कुराये तो ये हसरतें भी पूरी कर ले हम
और जब उम्र छा जाये काले बादलो की तरह
बस सुबह की नर्म घास पे
ओस बन के वही तोड़ दे दम