कभी कभी मैं सोचता हूँ की मैं क्यूँ नहीं Steve Jobs बन जाता हूँ
और क्या गलत सोचता हूँ मैं?
मेरे पास कॉलेज की एक डिग्री और MBA का भोकाल है
Sustainability और साथ में पश्मीना की शॉल है!
मन में ऊँचा उड़ने की उमंग है
असफलताओं का साथ है
और हर असफलता के पीछे बस मेरा ही हाथ है
जो कुछ भी Steve के पास था
उस से ज्यादा मेरे पास है
फिर भी मैं भेडचाल का मारा हूँ
वही करता हूँ जिस से होता मन उदास है!
बाहर के लोगों को लगता है कि
मुझमे बड़ा talent है
पर सच तो है ये
और उतना ही blatant है
कि जो करना अच्छा लगता है
वो मैं कर नहीं पता हूँ
Constipated सपने देखता हूँ
और आजकल हर रोज़ कायम चूर्ण खता हूँ
जब मधु की भाषा बोलता हूँ तो सपनो का कब्ज़ ख़त्म हो जाता है
और अगली सुबह से वही pressure वापस आ जाता है
एक शाम धुएं के बवंडर में मैंने बड़ी clarity से सोचा
अपने मन के हर एक कोने को खरोचा
तब जा के बात मेरी समझ में आई
Steve बनना चाहता हूँ
पर मैं तो Jobs का दीवाना हूँ
दिल के चार टुकड़े करके
ये बात समझ आती है
या तो हम Steve बनते हैं
या Jobs हमारी ज़िन्दगी खाती है
A witty and interesting poem.. Now, can we have the budding counselors and psychiatrist on site to dissect this to realize its true meanings?
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