याद है वो शाम जब तुम सफेदी को लपेटे पिछले दरवाज़े से बरबस ही मेरे घर में घुस आई थी?
हर तरफ लोग थे बेशुमार,
फिर भी मुझे सिर्फ तुम ही नज़र आई थी
आँखों के कोनो से झाँक झाँक के देखा किया था तुम्हे
एक सवाल था ज़हन में
सोचा आज पूछ लूं तुमसे.....
क्या तुम मेरी चोरी पकड़ पाई थी?
तुम्हारी चोटी से गिरा वो बालों का गुच्छा
आज भी मेरी किताब के पन्नो में मुस्कुराता है
आहिस्ते आहिस्ते बातें करता है मुझसे....
कान में फुसफुसाता है
मेरी हंसी पे वो भी हवा के झोंके सा लहराता है
मैं खामोश हो जाऊं तो वो भी बस पन्नों में सिमट जाता है
तुम्हारी वो तस्वीर जो बड़ी दूर से खीची थी मैंने
आँखें बंद करते ही सामने आ जाती है
सपनो के खटोले पे भी तुम आ बैठती हो हमेशा
क्यूँ कुछ बोलती नहीं..
बस होठों को हिला के चली जाती हो
आसमान में चाँद को हर रात मैंने नज़रंदाज़ किया है
मैं तो तारों को जोड़ के तुम्हारी शकल बनाता था...
घर की पिछली दीवार के पीछे सिर्फ सूरज नहीं उगता था
हर रोज़ साथ में चाँद भी आ जाता था
उस चिलमन से ......
जिसमे हर रोज़ तुम बैठा करती थी
मोहब्बत है मुझे
उन किताबों में खोने की कोशिश किया करती थी
दूर से ही मैं ये जान लेता था
तुम्हारी तमन्नाओं को छान लेता था
तुम्हारे चेहरे का इल्म नहीं था मुझे
झटके से साफ़ की हुयी यादों का साथ था
मेरे घर के किस कोने से तुम्हारे घर का कौन सा कोना दिखता है
इसमें मैं उस्ताद था
बड़ी मुश्किल से आज तुम मेरे साथ हो
फिलहाल तो दूर हो पर पता है कि हर पल मेरे पास हो
अगर कुछ अच्छा हुआ है तो वो तुम हो मेरे साथ
आँखें बंद करता हूँ तो महसूस करता हूँ
अपने हाथों में तुम्हारा हाथ
परेशानी में बस एक ही चेहरा याद आता है
तुम ना होती तो बेनाम हो जाता मैं
आज खुश हूँ...तुम्हारी वजह से ज़िन्दगी इनाम हो गयी है!!
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macha rahe ho aaj kal..bahut umda hai
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